गुरुवार, 25 जून 2009

आदिवासी लड़कियों के साथ रोज एक शाइनी













आदिवासी लड़कियों के साथ रोज एक शाइनी

राजेश अग्रवाल, रायपुर से

छत्तीसगढ़ की नाबालिग लड़कियों को महानगरों में घरेलू नौकरानी का काम देने के झांसे से ले जाने के बाद उन्हें अंधेरी कोठरी में ढ़केल देने का खेल सालों से चल रहा है लेकिन शाइनी आहूजा प्रकरण से यह सवाल फिर खड़ा हो गया है. अगर जशपुर, सरगुजा और कोरबा के गांवों में आप जाएं तो आपको इन इलाकों से गायब आदिवासी लड़कियों के साथ हर रोज़ एक शाइनी के किस्से मिल जाएंगे.

एक लापता लड़की के परिजन

इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस समय शाइनी आहूजा प्रकरण चर्चा में था, उसी समय लड़कियों की मंडी के कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के जशपुर में मुंबई पुलिस का एक दल बंधक बनाई गई लड़की को छोड़ने के लिए आया हुआ था.

कुछ उत्साही पत्रकारों ने अपनी कल्पना शक्ति का सहारा लिया और छत्तीसगढ़ के अख़बारों में 19 मार्च को सुर्खियां रही कि मुम्बई के फिल्म स्टार शाइनी आहूजा ने जिस लड़की से बलात्कार किया, वह छत्तीसगढ के जशपुर जिसे के अंतर्गत आने वाले डूमरटोली गांव की रहने वाली है.

जैसा कि जशपुर के पुलिस अधीक्षक अक़बर राम कोर्राम बताते हैं- “ शाइनी आहूजा प्रकरण के बाद मुम्बई से पुलिस की एक टीम डूमरटोली आई थी, लेकिन इसका शाइनी प्रकरण से कोई सम्बन्ध नहीं है. वह एक लड़की को मुम्बई से यहां छोड़ने पहुंची थी, जो पिछले 9 मार्च से गायब थी. इस लड़की का नाम गायत्री है और वह अपनी एक सहेली अनीमा के बहकावे में आकर मुम्बई चली गई थी.”

अनीमा के कुछ परिचितों के ज़रिये गायत्री का पता चला और उसे डूमरटोली लाकर उनके परिजनों को सौंप दिया गया. लड़कियों को ट्रैफेकिंग से बचाने और उन्हें सीमित साधनों के बीच दिल्ली, मुम्बई, गोवा जैसे महानगरों से छुड़ाकर लाने वाली जशपुर की सामाजिक कार्यकर्ता एस्थेर खेस का कहना है कि शाइनी प्रकरण के बीच मुम्बई की पुलिस का जशपुर पहुंचने से यह फिर साफ़ हो गया है कि वहां बड़ी तादात में घरेलू नौकरानियों के रूप में काम करने वाली लड़कियां छत्तीसगढ़ से गई हुई हैं.

हज़ारों शिकार
सुश्री खेस कहती हैं कि शाइनी ने जिस लड़की को शिकार बनाया वह गायत्री तो नहीं है, लेकिन हमारे पास दर्जनों ऐसे मामले हैं जिनमें सबूत है कि जशपुर की लड़कियों को घरेलू काम कराने के बहाने से न केवल देश के भीतर बल्कि कुवैत और जापान तक ले जाए गए.

कुछ और सामग्री

यहां दरवाजे बंद हैं

लड़कियों की तस्करी का गढ़

लड़कियों की मंडी

बिक गई और बन गई पारो

दिल्ली और गोवा जा पहुंची कई लड़कियों का सालों से पता नहीं है और उनके मां-बाप दलालों के दिए फोन नम्बर और पतों पर सम्पर्क नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इनमें से ज़्यादातर फर्ज़ी हैं. लड़कियों को ले जाने के बाद प्लेसमेंट एंजेंसियों के दफ्तरों में फिर कोठियों में इन लड़कियों को 24 घंटे रखा जाता है. जब घर में पुरूष सदस्य अकेले होते है तो उनके साथ बलात्कार किया जाता है.

इनको ठीक से भोजन, कपड़ा तक नहीं मिलता, इन्हें कोई छुट्टी नहीं मिलती. इनका वेतन दलालों के पास जमा कराया जाता है. लड़कियों को अपने घर लौटने का रास्ता पता नहीं होता इसलिये वे सारा ज़ुल्म चुपचाप सहती हैं.

सुश्री खेस का यह भी कहना है कि दिल्ली में 150 से ज्यादा प्लेसमेंट एजेंसियां काम कर रही हैं जो झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर छत्तीसगढ़ से लड़कियों को बुलाते हैं. इनके एजेंट का काम इन लड़कियों के वे रिश्तेदार करते हैं, जो कई साल पहले से ही इन महानगरों में काम कर रहे होते हैं.

नया ट्रैफेकिंग कानून
छत्तीसगढ़ महिला आयोग की अध्यक्ष विभा राव राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास के इस बयान से सहमत हैं कि गरीब नाबालिग लड़कियों को शोषण का शिकार होने से बचाया जाए. श्रीमती राव को यक़ीन है कि अब देशभर में घरेलू नौकरानियों की सुरक्षा को लेकर नई बहस छिड़ेगी. उनका कहना है कि इस समस्या से छत्तीसगढ़ सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में से एक है, इसलिय़े वे चाहती हैं कि ट्रैफेकिंग को लेकर भी मौजूदा कानूनों की समीक्षा की जाए और इसे रोकने के लिए प्रावधान कड़े किए जाएं.

श्रीमती राव ने शाइनी आहूजा प्रकरण में छ्त्तीसगढ़ की लड़की के शिकार होने की अफवाह के बाद जशपुर कलेक्टर और एस पी को पत्र लिखकर पूरे मामले का प्रतिवेदन देने के लिए भी कहा है.

वास्तव में घरेलू नौकरानियों की सुरक्षा व ट्रैफेंकिंग रोकने के ख़िलाफ एक कानून पिछली सरकार में ही बन जाना था. तत्कालीन केन्द्रीय महिला बाल विका मंत्री रेणुका चौधरी ने जून 2007 तक इस कानून का ख़ाका तैयार करने के लिए देशभर में सक्रिय महिला संगठनों से सुझाव मांगा था. लेकिन प्रस्ताव भेजने के बाद क्या हुआ यह किसी को नहीं मालूम.

ट्रैफेंकिंग के ख़िलाफ ही काम कर रहीं कुनकुरी की अधिवक्ता सिस्टर सेवती पन्ना का कहना है कि उनसे भी सुझाव मंगाए गए थे लेकिन उसका क्या हुआ उन्हें पता नहीं. इसमें उन्होंने महानगरों से छुड़ा कर लाई जाने वाली लड़कियों के पुनर्वास के लिए भी पुख़्ता उपाय सुझाए थे, क्योंकि देखा गया है कि महानगरों में रहकर लौटने वाली लड़कियां गांवों में व्यस्त न होने के चलते विचलित रहती हैं. वे यहां दुबारा घुल-मिल नहीं पाती और दुबारा महानगरों की तरफ भागने का रास्ता तलाश करती हैं.

बहरहाल, शाइनी आहूजा प्रकरण ने एक मौका और दिया है कि छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल से तस्करी कर महानगरों में भेजी जा रही लड़कियों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम उठाएं जाएं.

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
    गार्गी

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  2. kailash bhaiya apne sahi kaha.kise phursat inki log dhokhe dhandhe se ek do logo ko pakn kar kam ki iti sri kar dete hai

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  3. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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  4. कैलाशनाथ जी,
    आपने मेरा आलेख अपने ब्लाग में लेकर ठीक ही किया है, मसला गंभीर है-ज्यादा लोगों तक बात पहुंची. लेकिन खेद है कि इसके बारे में मुझे कुछ मालूम ही नहीं हुआ. यह लेख www.raviwar.com में और www.sarokaar.blogspot.com में प्रकाशित हुआ है. उचित होता यदि आप इनका लिंक साथ में देते. मेरे ब्लाग www.sarokaar.blogspot.com में मेरा ई-मेल एड्रेस भी है, आप अपने ब्लाग में लेने से पहले इसके बारे में मुझे पत्र लिख सकते थे.
    सादर

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